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किसान भाई केंद्र सरकार के पीएम चैट बोर्ड का कैसे उपयोग करें और इसके क्या लाभ हैं ?

किसान भाई केंद्र सरकार के पीएम चैट बोर्ड का कैसे उपयोग करें और इसके क्या लाभ हैं ?

किसान भाइयों की सहायता के लिए सरकार की तरफ से पीएम किसान चैट बोर्ड की शुरुआत की गई थी। इसकी सहायता से किसान बहुत सारी जानकारी हांसिल कर सकते हैं। किसानों की सहायता के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनके अंतर्गत किसान भाइयों को बहुत सारी उपयोगी जानकारी दी जाती है। 

केंद्र सरकार ने किसान भाइयों की सहायता करने के लिए पीएम किसान चैट बोर्ड का आरंभ किया था। ये एक भाषा मॉडल है, जो कि कृषकों को पीएम किसान योजना के विषय में जानकारी और सहयोग प्रदान करता है। इस चैटबॉट के माध्यम से किसान भाई अपने आवेदन की स्थिति, भुगतान विवरण, अपात्रता की स्थिति और योजना से संबंधित अन्य नवीन अपडेट हांसिल कर सकते हैं।

चैट बोर्ड का कैसे उपयोग करें ?

पीएम किसान चैट बोर्ड का उपयोग करना अत्यंत आसान है। किसान भाई पीएम किसान मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से या फिर सीधे तौर पर इसकी वेबसाइट पर जाकर इसे एक्सेस कर सकते हैं। पीएम किसान मोबाइल एप्लिकेशन में चैटबॉट को "किसान-eमित्र" के तौर पर जाना जाता है। किसान भाई "किसान-e मित्र" टैब पर जाकर चैटबॉट से बात करना चालू कर सकते हैं। चैटबॉट से मदद लेने के लिए किसान अपनी भाषा का चयन कर सकते हैं। इसके बाद वह अपने सवाल पूछ सकते हैं। 

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चैट बोर्ड की ये कुछ खास बातें हैं 

पीएम किसान चैट बोर्ड हिंदी, अंग्रेजी समेत 5 भाषाओं में उपलब्ध है। ये किसानों को उनके आवेदन की स्थिति, भुगतान विवरण, अपात्रता की स्थिति और योजना-संबंधित अन्य अपडेट प्राप्त करने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त ये किसानों को योजना के विषय में जानकारी प्रदान करता है। जैसे कि पात्रता मानदंड, आवेदन प्रक्रिया और भुगतान की शर्तें। पीएम किसान चैट बोर्ड किसानों के लिए अत्यंत आवश्यक साधन है। इससे किसानों को योजना के बारे में जानकारी और मदद मिलती है। ये बोर्ड 24x7 मौजूद है और ये बहुत स्पीड से काम करता है।

जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जालंधर में नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (Divya Jyoti Jagrati Sansthan)ने जैविक खेती की प्रेरणा एवं प्रशिक्षण के पुनीत कार्य में मिसाल कायम की है। बीते 15 सालों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रत इस संस्थान ने कैसे अपने मिशन को दिशा दी है, कैसे यहां किसानों को प्रशिक्षित किया जाता है, कैसे सेवादार इसमें हाथ बंटाते हैं जानिये।

सफलता की कहानी -

जैविक खेती के मामले में आदर्श नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान में जनजागृति एवं प्रशिक्षण की शुरुआत कुल 50 एकड़ की भूमि से हुई थी। अब 300 एकड़ जमीन पर जैविक खेती की जा रही है। अनाज की बंपर पैदावार के लिए आदर्श रही पंजाब की मिट्टी, खेती में व्यापक एवं अनियंत्रित तरीके से हो रहे रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से लगातार उपजाऊ क्षमता खो रही है। जालंधर के नूरमहल स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने इस समस्या के समाधान की दिशा में आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।

गौसेवा एवं प्रेरणा -

संस्थान में गोसेवा के साथ-साथ पिछले 15 सालों से किसानों को जैविक खेती के लाभ बताकर प्रेरित करने के साथ ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। संस्थान की सफलता का प्रमाण यही है कि साल 2007 में 50 एकड़ भूमि पर शुरू की गई जैविक कृषि आधारित खेती का विस्तार अब 300 एकड़ से भी ज्यादा ऊर्जावान जमीन के रूप में हो गया है। यहां की जा रही जैविक खेती को पर्यावरण संवर्धन की दिशा में मिसाल माना जाता है। ये भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

सेवादार करते हैं खेती -

संस्थान के सेवादार ही यहां खेती-किसानी का काम संभालते हैं। किसान एवं पर्यावरण के प्रति लगाव रखने वालों को संस्थान में विशेष कैंप की मदद से प्रशिक्षित किया जाता है। गौरतलब है कि गौसेवा, प्रशिक्षण के रूप में जनसेवा एवं जैविक कृषि के प्रसार के लिए प्रेरित कर संस्थान प्रकृति संवर्धन एवं स्वस्थ समाज के निर्माण में अतुलनीय योगदान प्रदान कर रहा है।

रासायनिक खाद के नुकसान -

संस्थान के सेवादार शिविरों में इस बारे में जागरूक करते हैं कि रासायनिक खाद व कीटनाशक से लोग किस तरह असाध्य बीमारियों की चपेट में आते हैं। इससे होने वाली शुगर असंतुलन, ब्लड प्रेशर, जोड़ दर्द व कैंसर जैसी बीमारियों के बारे में लोगों को शिविर में सावधान किया जाता है। ये भी पढ़ें: जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग यहां लोगों की इस जिज्ञासा का भी समाधान किया जाता है कि जैविक खेती के कितने सारे फायदे हैं। जैविक कृषि विधि से संस्थान गेहूं, धान, दाल, तेल बीज, हल्दी, शिमला मिर्च, लाल मिर्च, कद्दू, अरबी की खेती कर रहा है। साथ ही यहां फल एवं औषधीय उपयोग के पौधे भी तैयार किए जाते हैं।

गोमूत्र निर्मित देसी कीटनाशक के फायदे -

संस्थान के सेवादार फसल को खरपतवार और अन्य नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों से बचाने के लिए खास तौर से तैयार देसी कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। इस स्पेशल कीटनाशक में भांग, नीम, आक, गोमूत्र, धतूरा, लाल मिर्च, खट्टी लस्सी, फिटकरी मिश्रण शामिल रहता है। इसका घोल तैयार किया जाता है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए जैविक कृषि के इस स्पेशल स्प्रे का इस्तेमाल समय-समय पर किया जाता है। ये भी पढ़ें: गाय के गोबर से बन रहे सीमेंट और ईंट, घर बनाकर किसान कर रहा लाखों की कमाई

जैविक उत्पाद का अच्छा बाजार -

जैविक उत्पादों की बिक्री में आसानी होती है, जबकि इसका दाम भी अच्छा मिल जाता है। इस कारण संस्थान में प्रशिक्षित कई किसान जैविक कृषि को आदर्श मान अब अपना चुके हैं। जैविक कृषि आधारित उत्पादों की डिमांड इतनी है कि, लोग घर पर आकर फसल एवं उत्पाद खरीद लेते हैं। इससे उत्पादक कृषक को मंडी व अन्य जगहों पर नहीं जाना पड़ता।

पृथक मंडी की दरकार -

यहां कार्यरत सेवादारों की सलाह है कि जैविक कृषि को सहारा देने के लिए सरकार को जैविक कृषि आधारित उत्पादों के लिए या तो अलग मंडी बनाना चाहिए या फिर मंडी में ही विशिष्ट व्यवस्था के तहत इसके प्रसार के लिए खास प्रबंध किए जाने चाहिए। ये भी पढ़ें: एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा संस्थान की खास बात यह है कि, प्रशिक्षण व रहने-खाने की सुविधा यहां मुफ्त प्रदान की जाती है। संस्थान की 50 एकड़ भूमि पर सब्जियां जबकि 250 एकड़ जमीन पर अन्य फसलों को उगाया जाता है।

कथा, प्रवचन के साथ आधुनिक मीडिया -

अधिक से अधिक लोगों तक जैविक कृषि की जरूरत, उसके तरीकों एवं लाभ आदि के बारे में उपयोगी जानकारी पहुंचाने के लिए संस्थान धार्मिक समागमों में कथा, प्रवचन के माध्यम से प्रेरित करता है। इसके अलावा आधुनिक संचार माध्यमों खास तौर पर इंटरनेट के प्रचलित सोशल मीडिया जैसे तरीकों से भी जैव कृषि उपयोगिता जानकारी का विस्तार किया जाता है। संस्थान के हितकार खेती प्रकल्प में पैदा ज्यादातर उत्पादों की खपत आश्रम में ही हो जाती है। कुछ उत्पादों के विक्रय के लिए संस्थान में एक पृथक केंद्र स्थापित किया गया है।

गोबर, गोमूत्र आधारित जीव अमृत -

जानकारी के अनुसार संस्थान में लगभग 900 देसी नस्ल की गायों की सेवा की जाती है। इन गायों के गोबर से देसी खाद, जबकि गो-मूत्र से जीव अमृत (जीवामृत) निर्मित किया जाता है। इस मिश्रण में गोमूत्र, गुड़ व गोबर की निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है। गौरतलब है कि गोबर के जीवाणु जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में लाल टमाटर के साथ-साथ काले टमाटर की भी खेती शुरू हो चुकी है

भारत में लाल टमाटर के साथ-साथ काले टमाटर की भी खेती शुरू हो चुकी है

काले टमाटर की खेती सर्वप्रथम इंग्लैंड देश में चालू की गई थी। इंग्लैंड में इसको इंडिगो रोज टमाटर के नाम से जाना जाता है। दरअसल, यूरोप की मंडियों में लोग इसे सुपरफूड के नाम से भी जानते हैं। आमतौर पर टमाटर खाना प्रत्येक किसान को पसंद आता है। इसके अंतर्गत विटामिन के, विटामिन- सी एवं विटामिन-ए भरपूर मात्रा में पाई जाती है। इसका सेवन करने से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं। ऐसे तो टमाटर का उपयोग सौंदर्य उत्पाद निर्मित करने के लिए भी किया जाता है। परंतु, टमाटर का सर्वाधिक उपयोग लोग सलाद के रूप में करते हैं। अधिकांश लोगों को यह लगता है, कि टमाटर केवल लाल रंग के ही होते हैं। परंतु, इस प्रकार की कोई बात नहीं है। टमाटर काले रंग में भी उपलब्ध होते हैं। उसकी खेती भारत के विभिन्न राज्यों में की जा रही है। विशेष बात यह है, कि लाल टमाटर की भांति ही काले टमाटर का भी उत्पादन किया जाता है।

काले टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, काले
टमाटर की खेती करने के लिए गर्म जलवायु ज्यादा उपयुक्त मानी गई है। इसके लिए मृदा का पीएच मान 6 से 7 के मध्य होना बेहद आवश्यक है। ऐसी स्थिति में भारत के किसानों के लिए काले टमाटर की खेती करना अत्यधिक लाभकारी रहेगा। क्योंकि, भारत की जलवायु गर्म है। काले टमाटर की कीमत लाल टमाटर के तुलनात्मक काफी ज्यादा होती है। अब ऐसी स्थिति में किसान भाई इसका उत्पादन कर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं। परंतु, काले टमाटर के पौधों पर फल आने में थोड़ा विलंभ होता है। इस वजह से किसान भाइयों को इसकी खेती में थोड़े धीरज से कार्य लेने की जरूरत है।

हिमाचल प्रदेश में सर्वप्रथम काले टमाटर का उत्पादन शुरू हुआ है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काले टमाटर की खेती सर्वप्रथम इंग्लैंड में शुरू की गई थी। यहां पर इस टमाटर का नाम इंडिगो रोज टोमेटो से प्रसिद्ध है। हालाँकि, यूरोप की मंडियों में लोग इसको सुपरफूड भी कहते हैं। फिलहाल, भारत के अंदर भी आजकल काले टमाटक की खेती शुरू हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश में किसान काले टमाटर का उत्पादन कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में विदेशों से इसके बीज मंगवाए गए थे। इसके उपरांत आहिस्ते-आहिस्ते अन्य राज्यों में भी काले टमाटर का उत्पादन शुरू हो गया। ये भी पढ़े: देसी और हाइब्रिड टमाटर में क्या हैं अंतर, जाने क्यों बढ़ रही है देसी टमाटर की मांग

किसान इसकी खेती से 4 लाख रुपये तक का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं

काले टमाटर की रोपाई सर्दी के मौसम में की जाती है। जनवरी का माह इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा होता है। बुवाई करने के तीन माह के उपरांत फल आने चालू हो जाते हैं। मतलब कि आप अप्रैल माह से काले टमाटर की तोड़ाई शुरू कर सकते हैं। यदि किसान भाई एक हेक्टेयर में काले टमाटर की खेती करते हैं, तो वह 4 लाख रुपये तक की आमदनी आसानी से कर सकते हैं। क्योंकि, इसका भाव लाल टमाटर की तुलना में ज्यादा होता है। भारत के अंदर फिलहाल काले टमाटर की कीमत 100 से 150 रुपये प्रतिकिलो है।
गोमूत्र की गंध और स्वाद आपकी पसंद का होगा, क्योंकि अब मनचाहे फ्लेवर में गोमूत्र उपलब्ध

गोमूत्र की गंध और स्वाद आपकी पसंद का होगा, क्योंकि अब मनचाहे फ्लेवर में गोमूत्र उपलब्ध

यह फ्लेवर्ड गोमूत्र वर्तमान में 6 प्रकार के भिन्न भिन्न स्वाद में मौजूद है। इन फ्लेवर्स में स्ट्रॉबेरी, पान, मैंगो, ऑरेंज, पाइनएप्पल और मिक्स फ्लेवर है। इसके एक लीटर की कीमत 200 रुपये के लगभग है। गोमूत्र विगत कुछ सालों से ज्यादा चर्चा में है। दरअसल, इसका उपयोग औषधीय के तौर पर आयुर्वेद में सदियों से किया जाता रहा है। आयुर्वेद की द्रष्टि से देखें तो बहुत सारी गंभीर बीमारियों में भी इसके सेवन से फायदा होता है। भारत सहित संपूर्ण विश्व में ऐसे लाखों लोग हैं, जो इसका उपभोग करते हैं। परंतु, कुछ लोग इसके स्वाद और इसकी बदबू के कारण चाह कर भी इसका सेवन नहीं कर पाते हैं।

गोमूत्र ऑरेंज, आम और पाइनएप्पल फ्लेवर्स में उपलब्ध है

फिलहाल, ऐसे ही लोगों की सुविधा के लिए वैज्ञानिकों द्वारा फ्लेवर्ड
गोमूत्र तैयार किया गया है। इसका अर्थ यह है, कि फिलहाल गोमूत्र आपको अलग-अलग प्रकार के स्वाद में मिल पाऐगा। यदि आपको आम पसंद है तो गोमूत्र आम फ्लेवर में मिल जाएगा। यदि आपको संतरा पसंद है तो गोमूत्र ऑरेंज फ्लेवर में मिल पाऐगा। वहीं, यदि आप पाइनएप्पल के शौकीन हैं, तो आपको गोमूत्र इस स्वाद में भी मिल जाएगा। मतलब कि फिलहाल आप खट्टा, मीठा व नमकीन जैसा स्वाद और सुगंध में चाहेंगे गोमूत्र आपको उसी तरह का मिल जाएगा।

फ्लेवर्ड गोमूत्र को किसने तैयार किया है

गोमूत्र के विभिन्न फ्लेवर्स की यह बड़ी खोज आईआईटी मुंबई से पीएचडी कर चुके डॉक्टर राकेश चंद्र अग्रवाल ने की है। उन्होंने इस फ्लेवर्ड गोमूत्र को नाम संजीवनी रस रखा है। इस खोज के उपरांत गोमूत्र विभिन्न फ्लेवर्स में पूरे भारत में उपलब्ध है। भिन्न-भिन्न प्रयोग शालाओं में इसको तैयार करने के लिए लोगों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। डॉ. राकेश इसको लेकर दीर्घ काल से शोध कर रहे थे और अंततः उन्हें सफलता मिल ही गई। डॉ. राकेश का कहना है, कि गोमूत्र में विभिन्न प्रकार के एंजाइम्स और न्यूट्रिएंट्स होते हैं। जो हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के गंभीर रोगों से ग्रसित होने से बचाते हैं। इसलिए उन्होंने यह निर्णय लिया है, कि फिलहाल वह फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार कर इसको घर-घर तक उपलब्ध करा देंगे।

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फ्लेवर्ड गोमूत्र का नाम संजीवनी रस रखा है

मीडिया की खबरों के अनुसार, आपको बतादें कि यह फ्लेवर्ड गोमूत्र वर्तमान में 6 प्रकार के अलग-अलग स्वाद में मौजूद है। इन फ्लेवर्स में पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, पान, मैंगो, ऑरेंज और मिक्स फ्लेवर है। इसको तैयार करने के लिए फूड ग्रेड कलर एवं एसेंस का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में यह कोटा की 6 गोशालाओं में बनाया जा रहा है। लेकिन, आहिस्ते आहिस्ते इसको बड़े पैमाने पर तैयार करने की भी योजना है। यदि आप भी इस प्रकार का फ्लेवर्ड गोमूत्र चाहते हैं, तो आपको एक लीटर के लिए न्यूनतम 200 रुपये खर्च करने पड़ेंगे।
अमरूद की खेती को बढ़ावा देने के लिए इस राज्य में मिल रहा 50 प्रतिशत अनुदान

अमरूद की खेती को बढ़ावा देने के लिए इस राज्य में मिल रहा 50 प्रतिशत अनुदान

बेगूसराय जनपद में किसान केला, नींबू, पपीता और आम की खेती काफी बड़े पैमाने पर करते हैं। परंतु, अमरूद की खेती करने वाले किसान भाइयों की तादात आज भी बहुत कम है। बिहार राज्य में किसान दलहन, तिलहन, धान और गेहूं के साथ-साथ बागवानी फसलों की भी बड़े पैमाने पर खेती करते हैं। दरभंगा, हाजीपुर, मुंगेर, मधुबनी, पटना, गया और नालंदा समेत तकरीबन समस्त जनपदों में किसान फल और सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। विशेष कर इन जनपदों में किसान सेब, आलू, भिंडी, लौकी, आम, अमरूद, केला और लीची की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। परंतु, वर्तमान में उद्यान विभाग द्वारा बेगूसराय जनपद में अमरूद का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए शानदार योजना तैयार की है। इस योजना के अंतर्गत अमरूद की खेती चालू करने वाले उत्पादकों को मोटा अनुदान दिया जाएगा।

केवल इतनी डिसमिल भूमि वाले किसान उठा पाएंगे लाभ

मीडिया एजेंसियों के अनुसार, मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत बेगूसराय जनपद में अमरूद की खेती करने वाले किसान भाइयों को 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। मुख्य बात यह है, कि इस योजना के अंतर्गत जनपद में 5 हेक्टेयर भूमि पर अमरूद की खेती की जाएगी। जिन किसान भाइयों के पास न्यूनतम 25 डिसमिल भूमि है, वह अनुदान का फायदा प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए कृषकों को कृषि विभाग की आधिकारिक वेवसाइट पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा। यह भी पढ़ें: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

अमरुद उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 40 प्रतिशत अनुदान

बतादें, कि बेगूसराय जनपद में किसान केला,नींबू, पपीता और आम की बड़े स्तर पर खेती करते हैं। लेकिन, जनपद में अमरूद की खेती करने वाले कृषकों की तादात आज भी जनपद में बेहद कम होती है। यही कारण है, कि कृषि विभाग द्वारा मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत जनपद में अमरूद की खेती का क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी करने की योजना बनाई और किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है। किसान रामचंद्र महतो ने कहा है, कि यदि सरकार अनुदान प्रदान करती है, तो वह अमरूद की खेती अवश्य करेंगे।

बेगूसराय में कितने अमरुद लगाने का लक्ष्य तय किया गया है

साथ ही, जिला उद्यान पदाधिकारी राजीव रंजन ने कहा है, कि सरदार अमरूद एवं इलाहाबादी सफेदा जैसी प्रजातियों के पौधे कृषकों को अनुदान पर मुहैय्या कराए जाऐंगे। उनका कहना है, कि अमरूद के बाग में 3×3 के फासले पर एक पौधा लगाया जाता है। यदि किसान भाई एक हेक्टेयर भूमि में खेती करेंगे तो उनको 1111 अमरूद के पौधे लगाने होंगे। साथ ही, बेगूसराय जनपद में 5555 अमरूद के पौधे लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
भारत सरकार ने एकीकृत योजना का अनावरण किया, जानें इससे किसानों को क्या फायदा होगा

भारत सरकार ने एकीकृत योजना का अनावरण किया, जानें इससे किसानों को क्या फायदा होगा

भारत सरकार द्वारा एकीकृत योजना लॉन्च की गई है। किसानों के हित में आए दिन केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से योजनाएं जारी करती रहती हैं। इस बार किसानों के लिए केंद्र सरकार ने UPAg लॉन्च की है। आज हम अपने इस लेख में जानेंगे कि क्या एकीकृत योजना से किसानों की आमदनी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किया जा रहा है, कि किसी तरह से किसानों की आय दोगुनी की जाए। कृषि मंत्रालय द्वारा लॉन्च एकीकृत पोर्टल UPAg में कृषि से संबंधित जानकारियां मौजूद होंगी। यह एक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का एक महत्वपूर्ण अंग बनेगा। भारत सरकार ने देश के किसानों के लिए कृषि से जुड़ा एक यूनिफाइड पोर्टल लॉन्च किया है। यह एकीकृत पोर्टल (UPAg) कृषि के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का एक महत्वपूर्ण घटक है। खेती से संबंधित आकड़ों को इकट्ठा कर यह पोर्टल एक सुचारु सुविधा प्रदान करेगा।

यूनिफाइड पोर्टल का काम क्या है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस पोर्टल का प्रमुख उद्देश्य खेती से संबंधित मानकीकृत एवं सत्यापित आंकड़ों की कमी से जुड़ी चुनौतियों को दूर करना एवं उससे संबंधित सही-सटीक आंकड़ों को प्रस्तुत करना है। यह नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं एवं अंशधारकों के लिए खेती से संबंधित समस्याओं को कम करेगा। भारत सरकार ने UPAg (कृषि सांख्यिकी के लिए एकीकृत पोर्टल) का अनावरण किया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, कृषि क्षेत्र में डेटा प्रबंधन को कारगर बनाने एवं खेती से जुड़ी कई तरह की सूचनाओं को सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है। यह पोर्टल एक ज्यादा कुशल एवं उत्तरदायी कृषि नीति ढांचे की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रदान करता है।

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एकीकृत स्त्रोत का होगा डेटा

भारत सरकार के पास कृषि से जुड़े किसी डेटा की एकीकृत जानकारी नहीं है। साथ ही, खेती से संबंधित विभिन्न स्रोत भी बिखरे हुए हैं। ऐसी स्थिति में इस यूनिफाइड पोर्टल का उद्देश्य डेटा को एक मानकीकृत प्रारूप में समेकित कर इसको ठीक करना है। ताकि उपयोगकर्ताओं के लिए इसे सुगमता से पहुंचाया जा सके। साथ ही, खेती से संबंधित विभिन्न कार्यो की सही और सटीक सुनिश्चित समझ विकसित की जा सके।
प्राकृतिक खेती की महत्ता एवं इसके क्या-क्या फायदे हैं

प्राकृतिक खेती की महत्ता एवं इसके क्या-क्या फायदे हैं

प्राकृतिक खेती की जानकारी के लिए भारत सरकार द्वारा एक पोर्टल लॉन्च किया गया है। इस पोर्टल पर प्राकृतिक खेती से जुड़ी हर तरह की जानकारियां मिल जाऐंगी। भारत में प्राकृतिक खेती का प्रचलन निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। इस खेती में किसान किसी रसायन का उपयोग नहीं करते हैं। यह खेती बड़े स्तर पर ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग पर आधारित है, जिसमें बायोमास मल्चिंग, गाय के गोबर, मूत्र के उपयोग पर विशेष जोर दिया जाता है। मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए नीम से निर्मित जैविक उर्वरकों का स्प्रे किया जाता है।

प्राकृतिक खेती के क्या-क्या फायदे हैं

प्राकृतिक खेती का प्रमुख लक्ष्य मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित किए बिना फसल के उत्पादन को शानदार करना है। यह फसलों में विविधता को बनाए रखना, प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल करना,
जैविक खाद और एक बेहतर खेती के वातावरण को प्रोत्साहन देता है। प्राकृतिक खेती एक जैव विविधता के साथ कार्य करती है। यह मिट्टी की जैविक गतिविधि को बढ़ाने के साथ-साथ खाद्य पैदावार को भी प्रोत्साहन देती है।

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प्राकृतिक खेती से पैदावार में सुधार आता है

प्राकृतिक खेती में उत्पादन पारंपरिक खेती के मुकाबले में काफी अच्छा होता है। इससे किसानों का मुनाफा भी काफी ज्यादा बढ़ता है। साथ ही, इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी काफी बेहतर होती है। विगत कई वर्षों में परंपरागत कृषि करने वाले किसान इस प्राकृतिक खेती की ओर ज्यादा आकर्षित हुए हैं। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक खेती मृदा संरक्षण, बेहतर कृषि विविधता तथा वातावरण में होने वाले कार्बन और नाइट्रोजन पदचिह्नों की कमी में भी अहम योगदान देती है।

प्राकृतिक खेती में कम लागत से अधिक उपज मिलती है

प्राकृतिक खेती का प्रमुख उद्देश्य किसानों को ऑन-फार्म, प्राकृतिक एवं घरेलू संसाधनों का इस्तेमाल कर बेहतरीन पैदावार करना है। इस विधि में किसानों की लागत काफी ज्यादा कम होती है। प्राकृतिक खेती का सबसे तात्कालिक प्रभाव मृदा के स्तर पर पड़ता है। रोगाणुओं एवं केंचुओं का प्राकृतिक कृषि पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं। रसायन मुक्त कृषि करने से मृदा के स्वास्थ्य पर काफी गहरा असर पड़ता है। साथ ही, यह फसलीय पैदावार में बेहतरीन योगदान देती है।

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प्राकृतिक खेती के लिए पोर्टल जारी किया है

भारत सरकार द्वारा देश में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए एक वेबसाइट http://naturalfarming.dac.gov.in/ की शुरुआत की है। इस वेबसाइट पर प्राकृतिक खेती से जुड़ी हर तरह की जानकारियां मिल जाती हैं। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती के लिए उठाए जा रहे समस्त कदमों के विषय में बड़ी आसानी से जानकारी मिल जाएगी। इस पोर्टल को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया है।
जानिए अरोमा मिशन क्या है और इससे किसानों को क्या फायदा है

जानिए अरोमा मिशन क्या है और इससे किसानों को क्या फायदा है

बैंगनी क्रांति मतलब कि अरोमा मिशन ने किसानों की तकदीर बदल दी है। दरअसल, इस योजना के अंतर्गत किसानों की आमदनी में लगभग 2.5 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही, रोजगार में भी बढ़वार हो रही है। सरकार की इस योजना के माध्यम से तेलों एवं अन्य सुगंधित उत्पादों को तैयार करने में सहायता मिल रही है। किसानों की आमदनी को कई गुणा बढ़ाने के लिए भारत सरकार के द्वारा विभिन्न प्रकार की शानदार योजनाऐं चलाई जा रही हैं। इन्हीं में से अरोमा मिशन भी है, जो किसानों की आमदनी को दोगुना से भी कहीं ज्यादा करने में सहायता कर रही है। इस योजना की सहायता से किसान अपने खेत में सुगंधित फसलों की खेती बड़ी ही सुगमता से कर रहे हैं। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए-नए अवसर भी उत्पन्न हो रहे हैं। जिससे किसानों के साथ-साथ आम नागरिक भी आत्मनिर्भर हो सकें। मीडिया खबरों के अनुसार, अरोमा मिशन के अंतर्गत भारत के किसानों की आमदनी में तकरीबन 2.5 गुना इजाफा देखने को मिला है।

अरोमा मिशन आखिर होता क्या है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अरोमा मिशन सुगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए जारी की गई सरकार की एक अनोखी कवायद है। इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य सुगंधित तेलों एवं अन्य सुगंधित उत्पादों के विनिर्माण में भारत की उद्यमिता को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नवीन अवसर पैदा करना भी है। इसके अतिरिक्त इस मिशन के अंतर्गत किसानों को बीज व पौधे भी मुहैय्या करवाए जाते हैं। साथ ही, खेती किसानी की नई-नई तकनीकों के विषय में भी सिखाया जाता है। खबरों की मानें तो इस मिशन में केवल किसान ही नहीं बल्कि उसका संपूर्ण परिवार भी खेती-किसानी की तकनीक को सीख सकते हैं।

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अरोमा मिशन से किसानों को क्या लाभ हुआ है

अरोमा मिशन जम्मू कश्मीर में चलाए जाने वाला एक मिशन है। अरोमा मिशन में वैज्ञानिकों द्वारा भी पूरा सहयोग किया जा रहा है। अरोमा मिशन के अंतर्गत वैज्ञानिक सीधे तौर पर किसानों के खेतों पर पहुंच रहे हैं। साथ ही, उनकी विभिन्न प्रकार की दिक्कतों को भी हल कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि किसान फसल की उगाई से लगाकर उनकी कटाई तक वैज्ञानिकों की सहायता प्राप्त कर सकते हैं। इस संदर्भ में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की महानिदेशक एन कलाईसेल्वी ने बताया है, कि कृषि वैज्ञानिक फिलहाल प्रयोगशाला में ही बैठकर फसलों की निगरानी और किसानों की सहायता नहीं कर रहे हैं। वह फिलहाल स्वयं चलकर किसान का हाथ पकड़ रहे हैं। इसके साथ ही उनकी प्रत्येक दिक्कत-परेशानी को दूर करने की कोशिशों में जुटे हैं।
हिमाचल प्रदेश के किसानों के फायदे के लिए केंद्र सरकार ने अहम फैसला लिया

हिमाचल प्रदेश के किसानों के फायदे के लिए केंद्र सरकार ने अहम फैसला लिया

वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने बाजार इंटरवेंशन योजना के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में किसानों से सीधे सेब की खरीद की थी। इससे किसान भाइयों को काफी घाटे का सामना नहीं करना पड़ा था। बतादें, कि उन्हें उनकी फसल का सही भाव मिला था। यही कारण है, कि अब हिमाचल के किसानों ने केंद्र सरकार के समक्ष सेब की खरीदारी शुरू करने की मांग की है। हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक किसानों के लिए खुशखबरी है। हिमाचल प्रदेश सरकार की मांग पर केंद्र सरकार ने नाफेड के माध्यम से सेब की खरीद करने के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया है। यह कमेटी हिमाचल सरकार की मांग की समीक्षा करेगी। वहीं, इसके बाद केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगी। ऐसा कहा जा रहा है, कि रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार धान-गेहूं की भांति किसानों से नाफेड के माध्यम से सेब की खरादारी करने के लिए निर्णय ले सकती है। इससे कृषकों को सेब की अच्छी कीमत मिल सकेगी।

हिमाचल प्रदेश में सेब की फसल को हानि

दरअसल, इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में
सेब की फसलों को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा है। अत्यधिक बारिश होने से सेब के बहुत से बागान भूस्खलन की चपेट में आकर जमीदोंज हो गए। इससे किसानों को काफी ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है। साथ ही, बेमौसम बारिश होने की वजह से सेब के फल भी पेड़ पर ही सड़ गए। इसके चलते भी उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है। इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में बारिश से बहुत सारी सड़कें ध्वस्त हो गईं। यही वजह है, जो बागों से सेब मंडियों तक समय पर नहीं पहुंच पा रहे हैं।

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केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन कर दिया है

प्रदेश के स्थानीय किसानों का कहना है, कि एक तो पहले मौसम ने फसल को बर्बाद कर दिया है। अब मार्केट में सेब की सही कीमत नहीं मिल रही है। इससे उन्हें काफी घाटा उठाना पड़ रहा है। अब ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को धान-गेहूं की तर्ज पर किसानों से सेब की भी सीधी खरीदारी करनी चाहिए। यही कारण है, कि किसानों की मांग पर हिमाचल सरकार ने केंद्र से नाफेड के जरिए सेब की खरीद शुरू करने की मांग रखी है। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन कर दिया।

हिमाचल प्रदेश की कितने प्रतिशत हिस्सेदारी है

बतादें, कि कश्मीर के उपरांत सबसे ज्यादा सेब का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। यह सेब की पैदावार के मामले में भारत के अंदर दूसरे स्थान पर आता है। हिमाचली सेब की आपूर्ति केवल देश में ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल में भी होती है। मुख्य बात यह है, कि भारत में उत्पादित कुल सेब में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक होती है।
इस राज्य में प्याज स्टोरेज हाउस खोलने पर 75% सब्सिडी

इस राज्य में प्याज स्टोरेज हाउस खोलने पर 75% सब्सिडी

भारत में आजकल प्याज काफी मंहगा हो चुका है। अब आप भी ऐसे में इसका लाभ उठा सकते हैं। परंतु, उसके लिए आपको प्याज स्टोरेज हाउस खोलना होगा। यदि आप भी प्याज के माध्यम से तगड़ी आमदनी करना चाहते हैं, तो एक प्याज स्टोरेज हाउस खोल लें। यहां बड़ी बात यह है, कि इसके निर्माण पर आपको 4.5 लाख रुपये तक का अनुदान भी मिल जाएगा। भारत में आजकल प्याज जनता के खूब आंसू निकाल रहा है। इसकी कारण इसकी कीमत है। भारत में प्याज की कीमतें पुनः आसमान छू रही हैं। सप्लाई के अनुसार, प्याज का भंडारण न होने के चलते इसकी कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है। परंतु, प्याज की कीमतों में आए उछाल का फायदा आप भी प्राप्त कर सकते हैं। आपको बस एक प्याज स्टोरेज हाउस खोलना होगा, जिसके निर्माण पर आपको अनुदान भी मिलेगा। वहीं, बाद में प्याज के भंडारण व उसकी नीलामी से मुनाफा भी होगा।

बिहार सरकार ने उठाया अहम कदम

दरअसल, बिहार सरकार ने व्यापक प्याज भंडारण प्रणाली को विकसित करने के लिए एक बड़ी कवायद की है। राज्य सरकार प्याज भंडारण के लिए अनुदान प्रदान कर रही है। जिससे कि राज्य में प्याज का भंडारण सुनिश्चित किया जा सके। वहीं, इससे लोगों को भी लाभ मिले। ऐसी स्थिति में यदि आप भी बिहार से हैं और कोई नवीन व्यवसाय चालू करने की सोच रहे हैं, तो बिहार सरकार की इस योजना का फायदा उठा सकते हैं। इसी प्रकार ग्रामीण इलाकों में भी किसान अपनी लोकल स्टोरेज बना सकते हैं, जिस पर सरकार 75 फीसद तक की सब्सिड़ी दे रही है।

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बिहार सरकार कितनी सब्सिडी प्रदान कर रही है

बिहार सरकार के उद्यान विभाग के मुताबिक, सब्जी विकास कार्यक्रम (2023-2024) के अंतर्गत प्याज स्टोरेज की स्थापना के लिए राज्य सरकार अनुदान मुहैय्या करा रही है। सरकार की इस योजना के मुताबिक, 50 मीट्रिक टन प्याज स्टोरेज यूनिट के लिए 6 लाख रुपये की लागत निर्धारित की गई है। इस पर सरकार आपको 75 फीसद अनुदान देगी। ऐसे में अगर आप एक प्याज स्टोरेज हाउस का निर्माण करते हैं तो इस पर आपको 4 लाख 50 हजार रुपये तक की सब्सिडी मिलेगी। इसका मतलब कि आपको अपनी जेब से निर्माण करने पर सिर्फ 1 लाख 50 रुपये का खर्चा करना होगा।

बिहार के इन जिलों में आवेदन कर सकते हैं

बिहार सरकार वर्तमान में कुछ ही जनपदों में इस योजना को चला रही है। इसके अंतर्गत औरंगाबाद, गया, नालंदा, पटना, बक्सर, नवादा और शेखपुरा जैसे जनपद के लोग एवं किसान प्याज भंडारण के लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने की प्रक्रिया पूर्ण रूप से ऑनलाइन है, जो वर्तमान में शुरू हो गई है।

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योजना का लाभ लेने के लिए इस तरह आवेदन करें

यदि आप भी इस योजना का फायदा उठाकर प्याज स्टोरेज हाउस खोलना चाहते हैं, तो बागवानी विभाग की आधिकारिक वेबसाइट (https://horticulture.bihar.gov.in) पर जाकर इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने के लिए सबसे पहले वेबसाइट पर जाएं। इसके बाद 'सब्जी विकास योजना' पर क्लिक करें, जहां आपको प्याज स्टोरेज हाउस के निर्माण पर मिल रहे अनुदान से जुड़ा एक लिंक मिलेगा। लिंक पर क्लिक करने के पश्चात अपनी समस्त जानकारियां भर दें एवं फॉर्म जमा कर दें।

पीएम किसान सम्मान निधि की 15 वीं किस्त को आने में लगेगा समय जानें क्यों ?

पीएम किसान सम्मान निधि की 15 वीं किस्त को आने में लगेगा समय जानें क्यों ?

यदि आप भी पीएम किसान सम्मान निधि योजना का फायदा पाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको आज ही अपना दस्तावेजीकरण का काम पूर्ण कर लें।कृषकों को आर्थिक तौर पर सहायता प्रदान करने के लिए सरकार की तरफ से विभिन्न योजनाएं चलाई जाती हैं। इन योजनाओं में से एक योजना पीएम किसान सम्मान निधि भी है। इस योजना के माध्यम से किसान भाइयों के खातों में प्रति वर्ष 6 हजार रुपये की धनराशि भेजी जाती है। इस योजना के माध्यम से 2-2 हजार रुपये की धनराशि भेजी जाती है।

पीएम किसान सम्मान निधि योजना की 14 किस्त भेजी जा चुकी हैं

योजना के अंतर्गत अब तक 14 किस्त भेजी जा चुकी हैं। फिलहाल, किसान भाइयों को 15वीं किस्त का बड़ी बेसब्री से इंतजार है। जो कि शीघ्र ही उनके खातों में पहुंच सकती है। परंतु, यदि आपने अब तक ई-केवाईसी नहीं कराई है अथवा फिर फॉर्म भरने के दौरान कुछ गलती की है, तो आपको योजना का फायदा नहीं मिलेगा।

पीएम किसान की 15 वीं किस्त आने में विलंभ है

यदि आप PM किसान सम्मान निधि पोर्टल पर अपना विवरण देख रहे हैं। साथ ही, आपकी आगामी किस्त के लिए राज्य की मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं, तो आपको 2000 रुपये की धनराशि मिलने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। क्योंकि मंजूरी अभी राज्य सरकार की तरफ से नहीं दी गई है। राज्य सरकार आपके दास्तावेजों को वेरीफाई करके केंद्र को request for transfer Sign देगी। राज्य मंजूरी के कारण पैसे नहीं मिलने वालों में वो किसान शामिल होंगे, जो किसान अपनी कृषि भूमि का समुचित दस्तावेजीकरण नहीं कर पाए हैं। इसके साथ ही जो किसान कृषि पंजीकरण नहीं कर पाए हैं।

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जानें rft sign के बारे में

बतादें, कि जब आप पीएम किसान सम्मान निधि की वेबसाइट पर जाकर अपना पेमेंट स्टेटस चेक करते हैं, तब कई बार Rft Signed by State for 1st, 2nd instalment लिखा नजर आता है। दरअसल, इसका मतलब यह है, कि राज्य की सरकार ने लाभार्थी के डेटा की जांच-परख कर ली है, जो कि ठीक है। इसके पश्चात राज्य की सरकार केंद्र सरकार से लाभार्थी पात्र के खाते में रुपये भेजने के लिए अनुरोध करती है। ऐसी स्थिति में आप इस बात का खास ध्यान रखें, कि आपकी तरफ से दिए गए समस्त दस्तावेज सही हों। ekyc प्रक्रिया का पूर्ण होना भी आवश्यक है।
इस राज्य के किसानों को फसल विविधीकरण योजना के तहत 50% फीसदी अनुदान

इस राज्य के किसानों को फसल विविधीकरण योजना के तहत 50% फीसदी अनुदान

फसल विविधीकरण योजना के अंतर्गत सुगंधित एवं औषधीय पौधों के प्रत्यक्षण के लिए ऑनलाइन आवेदन 22 जनवरी 2024 से चालू हो गए हैं। बिहार सरकार कृषकों को फसल विविधीकरण करने के लिए बढ़ावा दे रही है। इससे ना केवल उनकी आमदनी बढ़ेगी बल्कि पर्यावरण को भी संरक्षित किया जाऐगा। इस योजना के चलते किसानों को सुगंधित और औषधीय पौधों की खेती करने से ज्यादा धनराशि मिल सकती है। किसानों को योजना के अंतर्गत पचास फीसद तक अनुदान मिल रही है।

इन फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है 

बिहार सरकार तुलसी, शतावरी, लेमन ग्रास, पाम रोजा और खस की खेती को फसल विविधीकरण के अंतर्गत प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। 22 जनवरी 2024 से योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन करना प्रारंभ हो गया है। बिहार के 9 जनपदों के किसान इस योजना का फायदा उठा सकते हैं। इस योजना का फायदा बिहार के नौ जनपदों के कृषकों को प्राप्त हो सकता है। इन जनपदों में पश्चिम चम्पारण, नवादा, सुपौल, सहरसा, खगड़िया, वैशाली, गया, जमुई और पूर्वी चम्पारण शम्मिलित हैं। योजना का फायदा उठाने के लिए इच्छुक किसान सुगंधित एवं औषधीय पौधों का क्षेत्र विस्तार कर सकते हैं, जिसका रकबा कम से कम 0.1 हेक्टेयर और अधिकतम 4 हेक्टेयर हो सकता है।

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कृषकों को 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जा रहा है   

बिहार के उद्यान निदेशालय ने फसल विविधीकरण योजना को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी साझा की है, जिसमें कहा गया है कि किसानों को लेमनग्रास, पाम रोजा, तुलसी, सतावरी एवं खस की खेती करने के लिए 50% प्रतिशत अनुदान मुहैय्या कराया जाऐगा। अगर इसकी इकाई की लागत 1,50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर है। बतादें, कि कृषकों को इस पर 50% प्रतिशत मतलब कि 75 हजार रुपये का अनुदान दिया जाऐगा।

योजना का लाभ हांसिल करने के लिए आवेदन कहां करें

किसान भाई इस योजना का लाभ उठाने के लिए किसान उद्यान निदेशालय की आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर मौजूद 'फसल विविधीकरण योजना' के 'आवेदन करें' लिंक पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। इच्छुक किसान आधिक जानकारी के लिए संबंधित जनपद के सहायक निदेशक उद्यान से संपर्क साध सकते हैं।